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रस-मीमांसा

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रस-मीमांसा हृदय में स्वभावतः सौंदर्य की भावना उठती है। पर ऊँट पर रखा हुआ घंटा कोई ऐसा सुंदर दृश्य नहीं जिसकी योजना से सौंदर्य के अनुभव में कुछ और वृद्धि हो । भावानुभव में वृद्धि करने के गुण का नाम ही अलंकार की रमणीयता हैं। | | हम ऊपर कह आए हैं कि अलंकार वर्णन करने की अनेक प्रकार की चमत्कारपूर्ण शैलियाँ हैं। इन्हें काव्यों से चुनकर प्राचीन आचार्यों ने नाम रखे और लक्षण वनाए। ये शैलियाँ न जाने कितनी हो सकती हैं । अतः यह नहीं कहा जा सकता कि जितने अलंकारों के नाम ग्रंथों में मिलते हैं उतने ही अलंकार हो सकते हैं। बीच बीच में नए आचार्य नए अलंकार बढ़ाते आए हैं; जैसे, ‘विकल्प' अलंकार को अलंकार-सर्वस्वकार राज्ञानक कुश्यक ने ही निकाला था। इसलिये यह न समझना चाहिए कि काव्यरचना में उतनी ही चमत्कारपूर्ण शैलियों का समावेश हो सकता है जितनी नाम रखकर गिना दी गई हैं। बहुत से स्थलों पर कवि ऐसी शैली का अवलंबन कर जायगा जिसके प्रभाव या चमत्कार की ओर लोगों का ध्यान न गया होगा और जिसका नाम न रखा गया होगा; यदि रखा भी गया होगा तो किसी दूसरे देश के रीतिग्रंथ में । उदाहरण के लिये यह पद्य लीजिए कँवलहि बिर-बिया जस बाढी । कैसर-बरन पीर हिय गाढ़ी ।। केसर-वन पीर हिय गाढ़ी इस पंक्ति का अर्थ अन्वय-भेद से तीन ढंग से हो सकता है—( १ ) कमल केसर-वर्ण (पीला) हो रहा है, हृदय में गादी पीर हैं। () गाढी पीर से हृदय केसरवर्ण हो रहा है। ( ३ ) हृदय में केसर-वर्ण गाढ़ी पीर है। इनमें से पहला अर्थ तो ठीक नहीं होगा, क्योंकि कवि की उक्ति का आधार कमल के केबल हृदय का पीला होना है, सारे कमल का १ [ भिलाइए जायसी-ग्रंथावली, भूमिका पृष्ठ १५५ से । ]