पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४००

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शब्द-शक्ति हैं। व्यंग्य प्रयोजन है-उत्कृष्टता और निकृष्टता । अर्थांतरसंक्रमित वाच्य में सामान्य-विशेष-भाव या व्यापक-व्याप्य-संबंध होना चाहिए। वाच्यार्थ को सामान्य या व्यापक होना चाहिए और लक्ष्यार्थ को विरोप या व्याप्य। दूसरे शब्दों में अर्थातरसंक्रमितवाच्य ध्वनि अजहत्स्वार्था वृत्ति पर आश्रित होती है। अत्यंततिरस्कृतवांच्य ध्वनि-अंधा दर्पण, कानी चारपाई, बेसिर-पैर की बात ।। न तो दर्पण के आँखें ही हुआ करती हैं और न बात के सिर-पैर हीं। इसलिये वाच्यार्थ अत्यंत तिरस्कृत हैं। अत्यंततिरस्कृतवाच्य ध्वमि जहत्स्वार्थी वृत्ति पर आश्रित होती है। सूचना केवल वैपरीत्य की सत्ता से अत्यंततिरस्कृतवाच्य ध्वनि और अभिधामूलक ध्वनि में भ्रांति न होनी चाहिए। लक्षणा में वैपन्य स्वतः होता है और अभिधामूलक ध्वनि में वैपरीत्य की प्रतीति परिस्थिति का वोध हो जाने के अनंतर होती है । निम्नलिखित उदाहरण देखिए-‘भगत जी बेधड़क घुमिए, उस कुत्ते को जो तुम्हें तंग किया करता था नदी किनारे उस कुंज में रहनेवाले सिंह ने मार डाला। - यह अभिधामूलक ध्वनि का उदाहरण है, विपरीत लक्षणामुलक अत्यंततिरस्कृतवाच्य ध्वनि का नहीं । अत्यंततिरस्कृतवाच्य ध्वनि के उदाहरण निम्नलिखित होंगे ( क ) क्या भरा हुआ सरोवर है कि लोग लोट लौटकर नहा | (ख) यदि यम-यातना से प्रेम है तो ईश्वर का भजन न करना। १ [ भम धम्मिश्च बीसत्थी सो सुणो अज्ज मारियो दैण ।। गोलाईकच्छकुडंगबासिना दरीऽसीहेण ।।]