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रस-मीमांसा

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रस-मीमांसा व्यंग्यार्थ वाच्यार्थ से सर्वथा भिन्न है भिन्नता बोद्धा, स्वरूप, संख्या, निमित्त, कार्य, प्रतीति, काल, आश्रय, विषय इत्यादि की हो सकती है।' बोद्धा-वाच्यार्थ का ज्ञान सरलतापूर्वक वैयाकरणों, नैयायिकों इत्यादि को हो सकता है। किंतु व्यंग्यार्थ की प्रतीति केवल सहृदयों को ही हो सकती हैं। स्वरूप- व्यंजना के द्वारा बहुधा विधि वाक्य का अर्थ-निषेध होता है। संख्या-व्यंग्य वाक्य विभिन्न व्यक्तियों के प्रति भिन्न भिन्न अर्थ धारण करता हुआ विविध प्रकार अर्थात् संख्या का हो जाता है। जैसे ‘सूर्य अस्त हुआ' का अर्थ साधारणतया ‘साँझ का समय होता है। किंतु दूती-वाक्य होने पर नायक के पास अभिसार करने का समय व्यंजित करेगा। | निमित्त-वाच्यार्थ की प्रतीति साधारण शब्द-ज्ञान से ही हो जाती है। किंतु व्यंग्यार्थ के लिये सहज प्रतिभा की आवश्यकता होती हैं। कार्य-वाच्यार्थ से केवल वस्तु का ज्ञान होता है। किंतु व्यंग्यार्थं से चमत्कार उत्पन्न होता है। काल-व्यंग्यार्थ वाच्यार्थ के अनंतर होता है। अतः कालभेद है। आश्रय-वाच्यार्थ केवल शब्द के आश्रित होता है। किंतु १ [ बोद्धृत्वरूपसंख्यानिमित्तकार्यप्रतीतिकालानाम् ।। श्रयविषादीनां भेदाद्भिन्नोऽभिधेयतो व्यङ्गथः ।। –साहित्यदर्पण, ५८।]