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रस-मीमांसा

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रस-मीमांसा कि इसके द्वारा इस बात की व्यंजना होती हैं कि भाव श्रोता के द्वारा रस के रूप में अनुभव किया जानेवाला है। . अब वस्तु-व्यंजना और अलंकार-व्यंजना पर विचार कीजिए । ये भी अनुमेय नहीं हैं। अनुमान में तीन अवयव होते हैं-पक्ष (जिसके संबंध में कोई बात सिद्ध करनी होती है), सपक्ष ( उसके सदृश वस्तु ) और विपक्ष ( उससे पृथक् वस्तु )। ‘अग्नियुक्त पर्वत हैं' उदाहरण में पक्ष = पर्वत, सपक्ष= रसोईघर और विपक्ष= सरोवर | अनुमितिवादी व्यंग्य वस्तु को अनुमेय सिद्ध करने के लिये जो प्रयास करते हैं उसमें ‘भगतजी बेधड़क घूमो इत्यादि उदाहरण में व्यंग्य वस्तु अनुमान की प्रक्रिया के द्वारा इस प्रकार सिद्ध करते हैं-भगत जी (पक्ष), उनका गोदावरी के सिंहयुक्त तट पर न घमना ( साध्य), क्योंकि घमनेवाला भी हैं, तट पर सिंह है ( हेतु ), अन्य भीरु ऐसे स्थान पर नहीं घूमा करते ।। , यहाँ भी हेतु व्यभिचारी हैं अर्थात् साध्य के साथ साथ अनिवार्य रूप से रहनेवाला नहीं है। यह नहीं कहा जा सकता कि भी व्यक्ति कभी भयप्रद पदार्थ के समीप जाते ही नहीं। वे गुरुजन के आदेश अथवा उमंग से प्रेरित होकर कभी कभी ऐसा कर सकते हैं । भीरु व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक ऐसे स्थानों में नहीं जायँगे -यह तर्क ग्राह्य नहीं है। यह कथन भी सत्य नहीं हो सकता किं सिंह भी तट पर रहता है क्योंकि ऐसा कहनेवाली कुलटा है। इस लिये हेतु संदिग्ध है। दूसरा उदाहरण लीजिए-‘मैं अकेले तमाल के कुंजों से ढके नदी तट पर पानी लाने जाती हूँ खरोंट लगे तो लगे । इस उदाहरण में इस व्यंग्य वस्तु का अनुमान कि कहनेवाली प्रिय से मिलने जा रही है ठीक नहीं है। क्योंकि एकांत १ [ देखिए ऊपर पृष्ठ ३८७ । ] २ [ देखिए ऊपर पृष्ठ ३९० ।]