पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/११९

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खड़ी बोली और उसका पद्य ] १२० [ 'हरिऔध' यदि इसका अर्थ असंभवतापरक मानकर ईश्वर-ज्ञान-विषयक असंभवता का संदेश इसको समझा जावे, तो इन चरणों की कुछ सार्थकता हो सकती है, तो भी यह कष्ट कल्पना है। वाच्यार्थ और शब्द-शास्त्र से उसका कोई सम्बन्ध नहीं। खेद है कि अाधुनिक रहस्यवाद की कविता अधिकांश ऐसी ही है। उत्साही और होनहार युवकों से मेरा यह सवि- नय निवेदन है कि वे प्रथम प्रकार की कविता करने का उद्योग करें। अंड-बंड कविता-रचना से बचें, अन्यथा खड़ी बोली की कविता कलंकित तो होगी ही उसका उद्देश्य भी सिद्ध न होगा। कवि सम्राट रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पदानुसरण करना गौरव की बात है, उनको आदर्श बनाना समुन्नति का साधन है, श्रेय का हेतु है, तथापि यह कहना पड़ेगा कि उचित योग्यता और अनुभव प्राप्त किये बिना ऐसी कामना करना बातुलता और वामन-चन्द्र-स्पर्श समान साहस है। रहस्यवाद के अनुरागिरों से मेरा एक निवेदन और है। वह यह कि अपनी कविता को यदि वे विश्व-संगीत समझते हैं तो समझे, उसमें विश्वबन्धुत्व का भाव और राग उनको सुन पड़ता है तो वे सहर्ष उसको सुनें और दूसरों को भी सुनाकर विमुग्ध बनावें, इसमें कोई आपत्ति नहीं। किन्तु कृपा करके प्राचीन कवियों पर कटाक्ष न करें और उनकी कुत्सा करने के लिए कटिवद्ध न होवें। अाप अपने हृदय में उनको संकीण समझे, उनको उन्मार्गगामी मानें । अपने को उच्च विचार का और विवेकी विचारते रहें, परन्तु उनके गुरु पद पर पद-प्रहार न करें। सूर सूर हैं, जिनकी ज्योति से हिन्दी-संसार देदीप्यमान है, गोस्वामी तुलसीदास उस उच्च पद पर आरूढ़ हैं, जहाँ अाज तक हिन्दी-संसार का कोई कवि नहीं पहुँचा। बिहारी हिन्दी-साहित्योद्यान-कोकिल हैं, और देव काव्य- थैसर-सरसीमा 1 इसी प्रकार प्रजभाषा के बहुत-से मान्य साचीन और आधुनिक कवि किसी न किसी विशेष गौरव से गौरवित हैं। वे हमलोगों के विकास-हेतु हैं, और हमारे गुरुवर हैं। उन्हीं की उँगली पकड़कर हमने