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पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/११३

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रहीम के स्फुट हिन्दी-छन्द ।

जेहि कारन बार न लाए कछू,गहि संभु सरासन द्वैजु किया। गए गेहहि त्यागि कै ताही समै,सो निकारि पिता बनबास दिया ॥ कहै बीच रहीम रह्यो न कछू,जिन कीन्हो हुतो बिनहार हिया। बिधियों न सिया सुखबार लिया,को सवार सिया पिय सार लिया ॥१॥

दीबो चहै करतार जिन्हैं सुख,सो तौ रहीम टरै नहिं टारे। उद्यम कोऊ करौ न करौ,धन आवत आपही हाथ पसारे ॥ देव हँसैं सब आपुस में बिधि,के परपंच न जाहिं निहारे। बेटा भयो बसुदेव के धाम,औ दुंदभी बाजत नन्द के द्वारे ॥२॥

जाति हुती सखि गोहन मैं,मनमोहन को लखिकै ललचानो। नागरि नारि नई ब्रज की,उनहूँ नन्दलाल को रीझिबो जानो ॥ जाति भई फिरि कै चितई तब,भाव रहीम यहै उर आनो। ज्यों दमानकमें मानक फिरि,तीर सों मारिलै जात निसानो ॥ ३॥

सीखी है ऐसी रहीम कहा,इन नैन अनोखे धौं नेह की नाधन। ओट भए रहते न बनै,कहते न बनै बिरहानल राधन ॥ पुन्यन प्यारे सों भेंट भई जुपै,भो न कुसंग मिल्यो अपराधन। स्याम-सुधानिधि-आननकी,मरिए सखि सूधे चितैबे की साधन ॥४॥