पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/१३

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रहीम का परिचय।


त्यभिमान को अपनी पगड़ी के नीचे छिपाकर जंगल में भाग गए थे तो इनकी अवस्था को सोचकर कविवर रहीम के हृदय में बड़ा सोच था। साथही ये उनके आत्मगौरव का खयाल करके मनही मन प्रताप पर मुग्ध भी थे। उनके इस पवित्रकार्य में उत्साह बढ़ाने के लिए इन्होंने प्रताप के पास निम्न लिखित दोहा लिख भेजा था --

ध्रम रहसी रहसी धरा, खिसि जासे खुरसाण।

अमर विसम्भर ऊपरै, रखियो निहचै राण॥

बादशाह की अप्रसन्नता होते हुए भी धर्म और धरा दोनों तुम्हारी कृति से तुम से प्रसन्न और सन्तुष्ट हैं। धर्म तुम्हारी अटल धर्म-प्रियता के कारण प्रसन्न है कि इतने संकटापन्न होते हुए भी तुम उसकी प्राण-प्रण से रक्षा कर रहे हो और पृथ्वी तुम्हारी निश्चल वीरता के कारण तुमसे प्रसन्न है अस्तु, हे राजन् , तुम अपनी स्थिति में अटल रहकर उस विश्वम्भर जगदाधार पर अपना दृढ़ और अमर विश्वास रखना।

अमी पियावत मान बिन, रहिमन मोहि न सुहाय।

प्रेम-सहित मरिबो भलो, जो बिष देइ बुलाय॥

मान का कैसा भारी महत्त्व इनके हृदय में था जिसके न होने से अमृत-ऐसा अमरकारी पदार्थ भी इनकी दृष्टि में हेय था।

परोपकार का भाव तो उनके हृदय में उमड़ा ही पड़ता