पृष्ठ:राजविलास.djvu/१०२

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राजविलास । झनकह । नित्य नाहर ज्यों निसंकह, बिरुद मरद सु बहय बंकह ॥८॥ . गहकि भासुरि सेन गाहत, दुढि दुढि सु शत्रु ढाहत । बज्र सम करबाल बाहत, सज्जि दल सुल- तोन साहत ॥८॥ नूर नर नागर निरोगिय, अभय मन अह निसि असोगिय । भोगवे बहु भूमि भोगिय, स्वामि ज्यों सुन्दर संयोगिय ॥ ॥ ____ स्वर्ण रङ्ग शरीर सुन्दर । प्रगट मनु पुहवी पुरन्दर । केवि जिन डर दुरत कन्दर, मानई षट ऋतु सुमन्दिर ॥ ८॥ निसुनि चढ़त निसान भद्दह, रङ्क रिपु कुल होत रद्दह । भीम दल जनु मेघ भद्दह, सुकवि बोलत तसु सुसद्दह ॥१॥ राज राण सु नन्द रङ्गह । भीम रिपु दल करन भङ्गह । गाजई जस जानि गगह । चन्द पूरन मास चङ्गह ॥२॥ चिरञ्जीवि प्रताप जसु चिर, यान हय गय हों बहू थिर । शृष्टि तब लो अचर सुरगिर, गह कि बोलत मान जसु गिर ॥ ३ ॥ इति श्री. मन्मान कवि विरचिते राज विलास शास्त्रे राणा श्री राजसिंह जी कस्य पहाभिषेक विरुदावकी प्रभृति वर्णन माम पञ्चमो बिलास ॥ ५॥