पृष्ठ:राजविलास.djvu/१०७

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१०० राजविलास । सनौ भयौ सिरोंज भगग भै लसा सु भज्जिय ॥ अहमदाबाद उज्जैनि जन थाल मूगज्यों यरहरिय । राजेस राण सु पयान सुनि पिशुन नगर खरभर परिय॥२७॥ छन्द मकुन्द डामर । चतुरङ्ग चमू सजि सिन्धुर चञ्चल बङ्क बिरुदरु दान बहैं । अवधूत अजेज तुरङ्ग उतंगह रङ्गहि जे रिसु कट्टि रहैं ॥ अवगाढ़ सु आयुध युद्ध अजीत सु पायक सत्थ लिये प्रचुर । चित्रकोटधनी सजि राजसी राण यु मारि उजारिय मालपुरं ॥२८॥ अति बट्टि अवाज भगी दिसि उत्तर पंथ पुरंपुर रौरि परी। वह कन्त सुत्रम्बक नूर वह वह फेंग महो षिति बज्जि षुरी॥ उडि अम्बर रेन बहूदल उम्मडि सोषि नदी दह मग्ग सरं। चित्रकोट धनी चढ़ि राजसी राण यु मारि उजारिय माल पुरं ॥२८॥ करते बहु कूच मुकाम क्रमं क्रमि पत्त सु नागर चाल पहू । भहराय भगे धर लोक महा भय सून भये भरि नैरस हू ॥ असुरेश कै गेह सुवट्टि उदंगल डुल्लिय दिल्लिय सन्नि डरं। चित्रकोट धनी चढ़ि राज सी राण युमारि उजारिय माल पुरं ॥ ३० ॥

दल बिंटिय माल. पुरा सु चहाँ दिसि उपम

चन्दन जान अही। तहँ कीन मुकाम धुरंत सु त्रंबक सोच परयौ सुलतान सही॥नर नार्थ रहे तह सत्त अहो