पृष्ठ:राजविलास.djvu/१०८

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१०१ ' राजविलास । निसि सोवन मारस धीर धरं। चित्रकोट धनी चढि राजसी राण यु मारि उजारिय माल पुरं ॥ ३१ ॥ भर चौकिय देत चहैदिशि भूपति सौरभ टक्क पाराब स● । हुसियारि कहैं बर जोध हंकारहि हींसत है गजराज गजै ॥ सुहलाल हजार जरै सब ही निसि घोष सु नौबति नन्द घुरं । चित्रकोट धनी सजि राजसी राण यु मारि उजारिय मालपुरं ॥३२॥ - धक धूनिय धास सु कोट धकाइय गौषरु पौरि गिराइ दिये । ढम ढेर करी हट श्रेणि दुढारिय कंकर कंकर दूर किये ॥ पति साह सु दज्झन नैर प्रजारिय अंबर पावक झार अरं। चित्रकोट धनी चढ़ि राजसी राण यु मार उजारिय माल पुरं ॥ ३३ ॥ - तहां श्रीफरु पुगिय लौंग तमारह हिंगुल केसरि जायफलं । घनसार मृगंमद लीलि अफीमि अँबार जरन्त सु झारझलं ॥ उडि अग्गि दमग सु दिल्लिय उप्पर जाय परे सु डरै असुरं। चित्रकोट धनी चढ़ि राजसी राण यु मारि उजारिय माल पुरं॥३४ धर पूरिय धोम धराधर धुंधरि धाम भरे धन धान धर्षे । रबि बिम्बति हौं दिन गोप रह्यौ लुटि लच्छि अनन्त सु कोन लंपैं ॥ सिकलात पटम्बर सूफ सु अम्बर ईंधन ज्यों प्रजरें अगरं। चित्रकोट धनी चढ़ि राजसी राण यु मारि उजारिय माल पुरं ॥३५॥