पृष्ठ:राजविलास.djvu/१२९

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१२२ राजविलास । जरित साकति ससोह ॥ २५ ॥ सिरिछत्र सहस दिनकर समान, चामर ढलंत गोषीर वान । बिरुदेत विरुद बोलत सु बोल, जय हिन्दु नाह सासन अडोल ॥ २६ ॥ केदार राय कट्टन कलङ्क, पापिन प्रयाग हर पाप पंक । महुवॉन राय गङ्गा समान, असुरान राय उत्थपन थान ॥ २७ ॥ उनमत्त राय अंकुश प्रहार, सामन्त राय बर सिर सिंगार । असमत्य राय उद्धरन धीर, बंकाधि- राय बन्धन सु बीर ॥२८॥ दातार राय जलधर सु दान, तप तेज राय भल हलत भान । उत्तंगराय सिरि छत्र एक, इहि भन्ति बदत बन्दी अनेक ॥ २६ ॥ पुरतार मार धरहरिय क्षोनि, झलझलिय जलधि जग्गीय योनि । षल गृहनि परिय खलभल संपूर, उडि रेनु गेनु अरबरिय सूर ॥ ३० ॥ ____ कीजन्त राह मह सैल कहि। क्षितिरुह सु क्षीन बन सघन षुट्टि । यल बहत नीर थल नीर ठाह, उरझै कुरंग केहरि बराह ॥ ३१॥ श्रावन्त पेसकस प्रति दिसान, बहु नालबन्ध नृप भरत मान । पर नृपति किते बन्धन परन्त, धन- राशि जास कोसहि धरन्त ॥ ३२॥