पृष्ठ:राजविलास.djvu/१३२

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राजबिलास। १२५ डेरा उतंग दिय दिशि विदिशि राजद्वार हय गय हसम । बाजार चोक त्रिक वस्तु बहु सोह सकल श्री नगर सम ॥ ४३ ॥ प्रभु पद पूजन प्रथम स्नान किन्न सु अंग शुचि । विमल बसन पहिरिय विचित्र रवि सरिस रूप रचि कस्तूरी केसर कपूर हिंगलु मलया गिरि । घनयक्ष कर्दम घोल भार कुंदन कचोल भृत । । एक सो आठ वर रूप के भरे कुंभ गंगादि जल । कुमकुमा कुसुम केसरि मलय मधि कपर सृगमद सकल ॥ ४४ ॥ दधि मधु घृत गोखीर षंड तंडुल पंचामृत । बर मंडक पकवान विविध तीवन छतीस कृत ॥ अमृत फल सरदा अनार सहकार सदाफल। केला कमरख कलित सेव राइनि सीताफल ॥ श्रीफल बिदाम न्योजा सरस पिण्ड खजूरि चिरोंजि युत । अखरोट दाख पिसिता प्रमुख को मेवा कहि बरनवत ॥ ४५ ॥ अगररु तगरु अनाइ प्रचुर पुङ्गीनि गंज किय । तज पत्रज रु तमाल जायफल लोंग एलचिय ॥ नागबेलि दल सदल चारु,चौवा अबीर अति । अतर जवादि गुलाल'कुसुम चोसर अनेक भति । वादित्र ग्रीत नाष्टिक विबिध भारति मंगल दीप