पृष्ठ:राजविलास.djvu/१५३

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राजबिलाम। महोदधि रूपहि राज समुद रच्यो सुरसे ॥ १६३ ॥ कोटिन धन जिन लग्गौ जिन कमठानहि को- टिक धन युत जग्य कियो । निय नाउ सुजस प्रगट्यो नव खण्डहि जय हिन्दूपति सफल जियो ॥ सुर भवन सुजस बोले इह सुरगुरु बिबुधाधिप सुनि सुनि बिहसे । राजेशर राण महौदधि रूपहि राज समुह रच्या सुरसें ॥ १६४ ॥ चम्पक सहकार सदाफल चन्दन श्रीफल पुगी सीयफलं । सहतूत अशोक विदाम सरौसिय रम्भा राइनि ताल कुलं ॥ दारिम जम्भीरि दाष बोलसिरी तर वर सरवर सकल दिसें । राजेशर राण महोदधि रूपहि राज समुद्द रच्यो सुरसें ॥ १६५ ॥ अषियात अचल युग युग अवनीपति निश्चल किय भल निज नामं । ससि रबि सुर शैल अवनिसुर सलितह कन्स मलन शिब बिधि कामं ॥ श्री देवि शिवा सावित्री सुरवर तोलों कित्ति कलानि हसें । राजेशर राण महोदधि रुपहि राज समुद्द रच्यो सुरसें ॥ १६६ ॥ अम्बर बर पत्र मिषी पयसम्बुधि लेखिनि वज्र सुरेश लिखे । अवदात तऊ परि पारन आवहि राण सु हिन्दू धर्म रखे ॥ सुरही जन सन्त सु विन सहायक बसुधा गयहय धन बगसे राजेशर राण महा-