पृष्ठ:राजविलास.djvu/१६

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राजबिलास । जल बहत जोर पलहलत खाल, पयधार पतत दगगग प्रनाल । पप्पीह चीह पिउ पिउ पुकार, भूरूह विहस्सि अट्टार भार ॥ ४३ ॥ धौवंत सिहरि धन पलधार , पुची झुकीन जल यल प्रचार ॥ नीलांणी धर वरसंत नीर, चितरंग प्रानि मनु पहरी चीर ॥ ४४ ॥ . महिथल सुरग उपजे ममाल, अति अरुन अंग कामल अमोल ॥ बगपंति श्याम बद्दल बिहार, हिय मध्य पहरि मनु मुत्ति हार ॥ ४५ ॥ सब हलकि चली सलिता संपूर, बज्जत बारि लग्गत विधूर । उछलत छोल ऊघल अपार, पथ थकित पथिक को ल हय पार ॥ ४६ ॥ निय्यमिक बलन न लगत नाव, तट उपट बहत अति जोर ताव । भौंरह परंत लागत भीर, तरुवर उषारिले चलिय तीर ॥ ४७ ॥ निरपंत नीर नीरधिन माय, छवि चंद सूर राषी सुछाय। हलहलत भरित सरवर हिलार, रव समझि परंत न भेक रोर ॥४८॥ डहडहत हरित डंबर डहक, कासिल करत उपवन कुहक्क । मालती कुन्द केतकी मूल, फूले सुवृक्ष चंपक सफूल॥ ४॥ गिरि . दि शृङ्ग किय गलम गात, निया