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पृष्ठ:राजविलास.djvu/१६१

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राजविलास । तुम बिरद इ8 ॥ ध्रुव ट्रेक एक तुम साइ धर्म। कमधज्ज राय बर जंच कर्म ॥४३॥ पतिमाहि यंभ तुम भूमिपाल । दिल्ली यु नगर तुम ही सु ढाल । अहमदाबाद थानह सु ऐन चिर रही हुकम हम मन्ति चैन ॥४४॥ सुप्रसंस इती अनुगहि सिखाइ । पतिसाहि वेग दीना पठाइ ॥ पहुंचा सुदूत महाराज पास। सुव धार अप्पि गुदरे नृहास ॥ ४५ ॥ अहमदाबाद थानह सु अक्खि । सिरपांव आदि गुदरे स सक्खि ॥ राखे सुथान फुरमान राज । बसु- मती बधारह बाजिराज ॥ ४६॥ शिरपांव साहि पठयो यु सोइ । तिन सों प्रमेल ज्यों तेल तोइ। तिहि कद्य तेहि पहिरयो न पाम । कछु जानि तत्थ कलिकूट काम ॥ ४७ ॥ पहुचयो सोइ षावास पानि । महाराय मन्त जनु देव मानि ॥ संतोषि दूत पाठयो साहि ॥ तप- तीय साज हय दीन ताहि ॥४८॥ शिरपाव मुत्ति माला सतेज । शुभ षान पान प्रासन सहेज ॥ मनुहारि करी इक राखि मास । ठियो सु दिल्ली पतिसाह पास ॥ ४ ॥ ओरङ्ग साहि भेजो सु अत्थ । परख्यो नरिन्द परयाव पत्थ ॥ पहिराइ अन्य पुरुषहिं सुप्रीति ।