पृष्ठ:राजविलास.djvu/१६४

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राजविलाम । १५७ किये कलाप दूध फट्टो न होय दहि । बाक हीन फिरि बाक किंपि नन होइ लोक कहि ॥'तुट्ठो यु तार जोरे तऊ पर गंठि दुहु मज्झ पुन । पोरंग करे सनमान अति मिले नहीं महाराय मन ॥ ६ ॥ इक कहि क्षत्री ऊंच एक तुरकान सु अक्खहिं । बिधि रक्खहि इक बेद राह कुत वाहि करक्खहिं ॥ बधै इक्क बाराह इक्क उर हुदृ सुरहि उरि। रटे इक्क मुख राम इक्क रसना रसूल ररि ॥ मन्ने सु इक्क दिशि पुब्व मन इक पच्छिम दिशि अभिनमय । जसवन्त राय दिल्लीस युग राति द्यौस बादहि रमय६३ ॥ दोहा॥ जसपति राजा जीव तें ससकत भग्गी साहि । मल्ल पाड़ो सेल ज्यों नोरंग के उर मांहि ६४ ॥ ॥ कवित्त ॥ जीवन्ता जसवन्तराय मुरधरहि रहवर । मिलो न कबहूं मान साहि ओरंग हि सर भर ॥ मेंमुख न किय सलाम आन असपती न प्रक्खिय । कज्ज सु जान्यो कियो हद हिँदवानी रक्खिय ॥ महराज सोइ पत्तो मरन ब्रह्म विष्णु शिव नासु बस। ए ए असार संसार इह सार एक युग युग सुजस ॥ ६५ ॥ ॥दोहा॥ ... युगल पुत्त जसराज के युग लहि लहु पन जान ।