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पृष्ठ:राजविलास.djvu/१७३

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रोजविलास। किते कातरा काय ज्यों एन कपैं। नचे नारद तु वरु जैति जपैं। गहक शिबा चित्त गोमायु गिद्ध। लहक पशू पंखिनी मंस लुद्ध ॥ १११ ॥ . किते डूब जमदाढ़ कहूँ कटारी । भरं झुझरा भीम ज्यों रोस भारी ॥ तिनं मोह माया तजे गेह तीयं । पुकारें बकारें मनू छाक पीयं ॥ ११२ ॥ सराहें रु बाहैं किते सेल सेलं । चुवै रत्तमारत ज्यों नीर चैलं ॥ तुटें चाप चम्म धजा तेग वानं । बरं युद्ध आनुद्ध में भो बिहानं ॥ ११३ ॥ फिरे पील सूने परे पीलवामं। लुटै लछि लुटाक पिक्खे सु प्रानं । हयं नंषि रुडं नियं छन्द हिंडे । बली तत्थ बड़ हत्थ रट्ठोर तंडै ॥ ११४ ॥ ___ मनो पाथ पायोधि छंडी मृजादा । सबै सेन सत्ये भंगे साहिजादा ॥ भगी सेन सुलतान की सन्निभीतं । बढ़ी जेति कमधज्ज सत्थे वदीतं ॥११॥ नियं जेति मनी यु बग्गै निसानं । जपै देव जे जे सुरंगे न यानं । षलं पंडि पग्गेवरं खेत सुज्झ्यो । बहू लुत्थि पालुत्यि किन जाइ बझ्यो ॥ १९६ ॥ परे मीर सैयद्द रन इक्ल पंती। गिनें कोंन है पैदलं और दन्ती। भयो म पेमं सबै अप्प सत्यें। कहे मान यों छन्द रट्ठोर कत्ये ॥ ११७ ॥