पृष्ठ:राजविलास.djvu/१८४

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राजविलास । . १७७ मानपुरहि मारयो. दाह दिल्लीपुर दिनह । रूप पुत्ति रहुवरि साहि तें सबल सुलिनह ॥ गुरु हठ के गोमनी बंधि सलिता सु राजसर । सीरोही सिर दंड किन्न राना राजेसर ॥ किती ब कहूं मुंह कितो जस बल अनंत हिन्दू सु बर। अब धाइ गहै तिन पय शरन भंजहि फिरि असुरान भर ॥ १७५ ॥ इन अनिट्ठ ओरंग रज्ज कज्जे राजधहि । बाप हन्यो हनि बंधु पुत्त हनि सकल प्रबन्धहि॥ कूर गेह कलि गेह जानि अहि ज्यों दो जिम्भह । बचन जास चल बिचल मान मय मत्त कि इभ्भह ॥ करते सुछंद सेवा करत पुत्ति देत होतन प्रसन । मिलिये ब राण राजेश सों पातिशाह प्रावै पिशुन ॥ १०६ ॥ सुनत एह सारी सभा, सोनिग देव सुमंत । राजा रावत रतुवर, भल भल सकत भनंत ॥१७७n जान्यों जग प्रभु जोर बर, राजसिंह महरान । सरन तकि कमधज्ज सब, जीवित जन्म प्रमान१७॥ ठीक मंत ठहराइ के, लिखे ललित फुरमान । राना श्री राजेश का, बिनय बिबिध बापान ॥१७॥ ॥क्रवित्त ॥ स्वस्ति श्री सुभ थान प्रगट पट्टन उदयापुर । राजे श्री महाराण रूपू राणा राजेशर ॥ सुर नायक