पृष्ठ:राजविलास.djvu/१९२

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राजविलास । १८५ इन लुट्टो अग्गरो देश दिल्ली धर दाहिय । कियो कलह हम महल पालि सबही पतसीहिय ॥ मारि थान मेंढ़ता अप्प बल लयौ योधपुर । सल्लै ज्यों नटसल्ल राह सल्लै यु अम्ह उर ॥ रक्खेयु तुम्ह तिन रिपुन को बढि हेतो अप्प न बिरस । राजेश राण रट्ठौर दै साहि सत्य रक्खा सुरस ॥ ७ ॥ ॥दोहा॥ बंचि साहि फरमान बिधि, पाइय सकल प्रवृत्ति । राण लिषे फुरमान फिरि, माहि जोग सब सत्ति ॥८॥ ॥ कवित्त ॥ . रक्खें हम रट्ठौर सत्थ जसवंत राय सुत । इन जो सत अपराध किये तोऊ इह संमत ॥ करन मतो सो करहु जोर कह कहिय जनावहु । कही सु ावन कल्हि अद्य साई किन भावहु ॥ जेहो मु लेइ तब जानियहि प्रभु पन और सुपुरुष पन । राजेश राण कहि साहि सुनि बसुमति रहिहैं बर बचनाई। आइ गहै को इनहिं देव कह दैत रु दानव । रक्ख सज्ज खरिसाल मिलिहि जो कोटिक मानव ॥ अब हम त्योंही एह स्नेह हम इन गुरु सद्यन । अप्पै जो 'इन छेह तो 4 कैसो क्षत्रीपन ॥ कहिये सुप्रादि ही ब्रह्म कुल सरनागय · बत्सल बिरुद । २४