पृष्ठ:राजविलास.djvu/२०४

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राजधिलास। घे।घुदा पुर घाट घेरि प्रासुर सब पत्ते ॥ अबदुल्ला सु नवाब गिरुम गज सहित गिराइय । भान सिंघ निय मान गयो कूरभ गमाइय ॥ दल सहस बहत्तरि असुर दलि हिन्दू पति रविवय झु हद । इह मंतहि श्री महाराण नित मुगल ईश छंडे सु मद ॥ ७६ ॥ अमर राण अवदात साहि जहँगीर सज्जि दल । पायो चढ़ि असुरेश मझ मेवार सु महियल ॥ थप्पि च्यारि असि थान लेन बसुमति सु बढ्यो बहु । सत्त बरस ला सील नेटि परि भग्गि रहे नहु । असि च्यारि थान इक दिन उठे अकर राण लिन्नी सु इल । इहि मंतहि श्री महाराण निति बसुधा धारण अतुल बल ॥ ७७ ॥ ___ कुशल रहें निय कटक बैरि दल होइ बिहंडह । रुक्क प्रावति रतन भूष मरिहे अरि भंडह ॥ भग्गें असपति भार हत्य ज्यों बहुरि न आवहिं । इहे मंत ब्रह्म ईश किये सद्यन सुख पावहिं ॥ करिये न पिशुन भायो कहिं कत्थन खल क्यों करि कहे । राजेश राण इहि मंत ते दूध डंग दोज रहै ॥ ७ ॥ ॥ दोहा ॥ सु बचन प्रोहित के य सुनि राजसिंह महाराण । कुशल जैति दुहु कद्य ए मन्यो मन्त प्रमान ॥ ८ ॥ करन दुर्ग सजि के कलह जित्तन दल असुरेश ।