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पृष्ठ:राजविलास.djvu/२०५

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१८ राजविलास । जानि सु परबत दल प्रबल राण चढ़ राजेश ॥ ८ ॥ ॥ कवित्त ॥ राण चढ़े राजेश सहस पण बीश तुरग सजि । घरत निसाननि घोष रबि सु ढंकिय हय षुर रजि । मयंगल दल मय मत्त घटा उट्ठी कि श्याम चन । पयदल सहस पचीस सज्ज सायुध सरं तन ॥ रथ जंत्रि सहस सस्वहि भरिय कर हां गिनति परंत किहिं । जग मज्झ कवन जननी जन्यो जंग भाइ जित्तै सुजिहिं ॥ ८१ ॥ सत्य चढ़े अरि सिंघ वंक ये महा बीर बर।। जैत हत्य जै सिंघ कुवर करमेत कुलोधर ॥ भीम कुमार सभाग जोध रावर जसवंतह । भाव सिंघ भूपाल अरिन जन करन सु अन्तह ।। महाराय मनो- हर सिंघ चढ़ि नप दलसिंह सु बीर बर । सामंत राण राजेश के कलह कर कंकाल कर ॥२॥ नूप अरसीह सु नंद कुवर भगवंत सीह बर। फते सिंह करि फते गुनी सु गुमान सिंह गुर ॥ सबल राव सबलेस चंह झाला सु जैत चिर । सगतावत रावत्त केसरी सिंघ सिंह बर ॥ पांवार सु बैरी मल्ल पहु महा सिंघ रावत मरद ! रावत चौंडावत रतन सी महुकम सिंघ सु बढ़ बिरद ॥ ३ ॥ सांवल दास सकाज राज रक्खन सु रतुवर ।