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पृष्ठ:राजविलास.djvu/२१०

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राजविलास । १०३ अन्य दल पाठवहु अप्पन साहि रहो सु इह ॥११२॥ मानि महादर मंत दिलीपति रहयो मानि उर। सहिजादा निज सदि अगुरु सुलतान अकब्बर ॥ सकल भांति सनमानि कहयो तुम करो कटक्की । जोर हिंद गिरि जोर हलकि गहि लेहु हटक्की । आवै सुधाइ दल लेहु अति शैल सकल करि के सरद । करि जोर हिंदु दल सो कलह मही लेहु बाडम मरद ॥ ११३ ॥ साहि हुकम सुप्रमान लटकि शीशहि चढ़ाइ लिय । सब्ब करी सुसलाम साहि नन्दन अनंत श्रिय । अद्ध लाख सजि अश्व सहस सिंधुर मनु सेलह । किते खान उमराव गर्व गाढ़े लिय गैलह । हर बल हुसेन अगोर नारि आरा बगुर? । चढि चल्यो अकबर चंड चित पत्तन तक्खन उदयपुर ॥ ११४ ॥ . प्रबल पौरि प्राकार पिक्खि प्रासाद गृहं गृह । गोष झरोषा गेरि अजरि तजरी सुजहां तहं ॥ बहु देवल बाजार हद्द भनि केउ हजारह । संगी काम : सपल्ल अटा चित्रसारि अपारह ॥ जहं तहं सुकुंड वर बापिका वन उपवन सर वर सलित। भूनारि शीश जनु भालि पल नगर उदय पुर चेन नित ॥ ११५ ॥ निरखि उदयपुर नेन रिपु सुपत्ते अदभुत रस । भुल्लि रोस सुधि भुल्लि देखि कमठान चहाँ दिन ॥