पृष्ठ:राजविलास.djvu/२११

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२०४ राजविलास। रेह करत सराह बाह फुनि वाह वदंतह । राज यान सच्चा सुराण इत माम अनंतह ॥ पुर चहुं- ओर परराव परि विषधर ज्यों चंदन बिटपि । पतिसाह सु ओरंग साहि पहु यान यान तब थान यपि ॥ ११६ ॥ ___थप्पि यान चीत्तोर थप्पि पुर मंडल थानक । मंडल गढ़ बैराट भेंस रोडहि सुभयानक ॥ दश पुर नीमच टुर्ग चलहु सनकंध हचाचर । अरु जीरन अंटाल कपासनि नगर राज सर ॥ जरि थान उदेपुर भरि यवन अति अनीति बरती अवनि । पतिसाहि साहि ओरंग का जवन परत छिति रयनि दिन ॥११॥ ॥दोहा॥ थान जरे जहं तहं सुथिर, अरि मोरंग असुरेश । मेदपाट महि मंडले, राण सुनी राजेश ॥ ११८ ॥ ॥ कवित्त ॥ मेदपाटपति महल भूप भूपह सु भूमि भर । महाराइ रावर महिंदरावत घन घुमर ॥ राजा रावर ढाल आदि उमराव अनेकह। हिंदूपति किय हुकम सो निज सेन सटेकह ॥ भंजो ब थांन असुरोन भर निज निज धर रक्खो सुनप । अनसंक कंक अरि उत्थपहु तिलन गिना तुरकेश तप ॥ ११ ॥