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पृष्ठ:राजविलास.djvu/२१२

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राजविलास । २०५ ॥ दोहा॥ हिंदूपति श्रीमुख हुकम, सुवर वीर सुप्रमानि । अप्प अप्प रक्खन अवनि, चढ़े तुरंग पलानि ॥१२॥ ॥ कवित्त ।। गोपिनाह कमधज्ज चढ़े विक्रम चालुकह । रावत रतन उदंड चंड चोडा.उत रूपह ॥ कहि सगता उत कन्ह रंग रुख मागच रावत । चढ़ राव चहुवान केसरी सिंह सुहावत ॥ समलह दास कम- धज्ज चढ़ि चढ़ि दयाल मंत्री शवर । केसरी सिंह रावत चढ़े चोंडा उत नृप राघ चिर ॥१२१॥ चढ़े कुंवर वर गंग केसरीसिंह सुनंदन । सगता उत कुल सूर जोर अरि जूह निकंदन ॥ दुर्ग- दास सोनिंग चढ़ राठौर सुचंडह । महुकम सिंह मरद चोंडहर प्रकल भदंडह ॥ काल नरिंद जस- वंत चढ़ि दिल्लीपति दल बल दहन । मामंत सण राजेश के गुरु गुमान गय घड़ गहन ॥ १२२ ॥ ॥दोहा॥ चढ़ि उमराव चतुर्द सह, उद्धासन असुरान । सेन सहस दस अश्व सजि, निहसत नद्द निसान १२३ इति श्रीमन्मानकविविरचिते श्रीराजविलासशास्त्रे महाराण- श्रीराजसिंहजीपातिसाहओरंगसाहिसमरसंवाद- वर्णनं नाम दशमो विलासः ॥ १० ॥