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पृष्ठ:राजविलास.djvu/२१४

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२०७ राजविालम। कितने क कविल्ला उररि अमिल्ला अक्खि इलल्ला महि मिल्ला । काजी बहु मुल्ला बिफुरि बिलुल्ला झर मुह झल्ला सिर खुल्ला ॥ नर निपट नवल्ला रंग रसिल्ला दंडहु झल्ला मनु मल्ला । खग तेजरु भल्ला बान बहिल्ला गुरु जग हिल्ला हर हुल्ला ॥ ८॥ ___ कत्ती किल किल्ला सक्ति सलिल्ला तोप त्रिमुल्ला जाजल्ला। दल मचि दहचल्ला लोह उजल्ला नहिं बिचि पल्ला घर भल्ला ॥ घूमत घामल्ला छक छयल्ला तजि गृह तल्ला एकल्ला । तुटि तूरत बल्ला ढरि गज ढल्ला कापर डुल्ला अकतुल्ला ॥८॥ सोलंकी सूरा बबकि बिडूरा किय भक भूरा अरि झूरा । नाहर ज्यों तूरा बजि रन तूरासुर सिंधूरा परि पूरा ॥ पर दल चकचूरा करि बल क्रूरा बरि बर डूरा रन रूरा। अरि विष अंकूरा सकल. ससूरा ज्यों जर मूरा उनमूरा ॥ १० ॥ गोपी कमधज्जा सूर सकज्जा अटल अजज्जा गुरुलज्जा । सिंधुर हय सज्जा रूप सुरज्जा धरगिरि धुज्जा खग बज्जा । तीखे तनु तिज्जा भूरत भिज्जा गगन सुगज्जा आबिद्या। भय करि रिपु भज्जा शीश ससज्जा गिद्धि निषज्जा गहि बुद्या ॥ ११ ॥ टुज्जन दहबट्टा विमन बिकट्टा खग भंग सुट्टा उदभट्टा । नर के ज़्यों नट्टा उलट पलट्टा भरत कु-