पृष्ठ:राजविलास.djvu/२१५

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२०८ राजविलास लट्टा सँग तुट्टा ॥ जोधा रस जुट्टा घनदलघट्टा डपट दपट्टा गाहट्टा । झुकि झुकि ग्वग कट्टा जझट सझट्टा रण रस लुट्टा लाहुद्दा ॥ १२ ॥ ररबरि घन रुडा बिचलि बिहंडा महि परि मुंडा खल खंडा। प्रासुर सुउदंडा बिलझ बितंडा प्रबल प्रचंडा भुज दंडा ॥ कर सर कोदंडा बहु बल- वंडा भल किय भंडा खल खंडा। करि कट्टि भमुंडा अरिन अखंडा चढ़ि रण चंडा झर मंडा ॥ १३ ॥ ॥ कवित्त ॥ मंड्यो झर मुछाल काल रोमीन खयं कर । सोलंकी नृप सूर नाम विक्रम सुबीर नर ॥ साच वाच साधर्म गोपिनायक युग कित्तिय । देव सरि दुर्घाट यवन सेना तिन जित्तिय । लुटि लच्छि खजान अनेक विधि राणा राजेशर सुबल। जयपत्त प्रथम इहि जंग जुटि भल भग्गो असुराण दल ॥ १४ ॥ इति श्रीमन्मानकधिधिरचिते राजविलासशास्त्र देवसू ग्दुिर्घाटे रोमीसाई प्रथमयुद्ध- वर्णनं नाम एकादशो विलासः ॥१०॥ ॥दोहा॥ उदय भान कूऔर अमर, चाहुवान चतुरंग । उदयापुर थाने उररि, मारे म्लेच्छ मतंग॥ १ ॥ रुकमांगद रावार को कर सूर सपच्छ । सहस पचीसक असुर पर, नंखी बग्ग समच्छ ॥ २ ॥