पृष्ठ:राजविलास.djvu/२१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०० राजविलास। सूरा एकहि सहस सम, सहसहि सद्धत एक। सहसनि हू सद्ध नहीं, सूरा एक अनेक ॥ ३ ॥ धनि बासगनि धीर धनि, धनि २ चित्त बुधम्म । साई कज्जें रचि समर, मारे असुर अधर्म ॥ ४ ॥ पचीसोहि पवंग सों, सहस पचीसनि मध्य । अमुरायन उद्धस तें, निकरे सेन सुसद्धि ॥ ५ ॥ ___ छन्द--हनु फाल। तु बज्यो पहतार, कलि उदयभान कुमार । मह यवन सेन सुमध्य, यों धार मंडिय युद्ध ॥६॥ करबाल कुंत रु कत्ति, प्रादेया देवि उमत्ति । रिपु उदरि परिष सुरोरि, दल मचिय दोरादोरि ॥॥ मुख बचन चूक रे चूक भट बिकट अग्गि भभूक । बिफुरे सुहिंदू बीर, मारंत बड़ बड़ मीर ॥८॥ हय २ सुकेइ जकंत, के सिलह जीन कुकंत। . उझके सुसोवत केक, कहि तेक तेक रे तेक ॥६॥ भुजते के भय भीत, उठि भगे बारि अपीत । सतरंज पासा सारि, झरपे सुखेलहि झारि ॥ १० ॥ . कितनेक करत निमाज, धावंत ध्यानहि · त्याज । हलहलिश दल परिहाक, छबि उतरि उत्सक छाक ११॥ सुंदरिय नभ धन घोम, गडडंत गज्जत गोम । भरहरिय कायर भग्गि, लकलकिय उर उर लग्गि ॥१२॥ रिपु रुड मुड रुडंत, मुख मार मार बकंत ।