पृष्ठ:राजविलास.djvu/२२०

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राजधिलास। चंचल भारुहें । करवाले रिपु कुल काल कर गहि मरद मारत म्लेलयं ॥ महसिंघ बंक उमत्त रावत बैरि करन बिभत्ययं ॥ १० ॥ सलसलिय फनधर सधर संकर कंध कच्छप कस- मसे ॥ झलझलिय जलनिधि सलिल थल जल अनल बिनल सु उद्धसे । डर बिडर दिशि दिशि बिदिश डंबर यहउ झषर पित्यहं ॥ मह सिंघ पंक उमत्त रावत बैरि करन बिभत्ययं ॥ ११ ॥ ___ चढ़ि चाक चहु चक उझक हकबक छैल मद छक कुट्टयं । किलकंत कंत हसंत कलरव जंग जहं तह जुट्टयं ॥ मचि मार मार बकंत मुष मुष छज्यों नट इव कल्ययं । महसिंघ बंक उमत्त रावत बैरि करन बिभत्ययं ॥ १२ ॥ ___षनकंत षग्ग उनग्ग घग्गन झनकि जानि कि झल्लरी । भनकंत भेरि नफेरि चुंगल तूर त्रंबक दुरबरी ॥ गावंत सिन्धु राग गोरिय पिशुन पारिन पत्ययं । महसिंघ बंक उमत्त रावत बैरि करन बिभत्ययं ॥ १३ ॥ कटि कंध अंध कमंध आसुर बीर नच्चत बावरे । झटकंत दिशि दिशि धाइ षग झट उझट सझट उतावरे ॥ सलहंत सूर सनूर साहस मीर. मीरन संमिले । रघु चोंड हर गुरु रतन रावत रिनहि रिपुदल रलतले ॥१४॥