पृष्ठ:राजविलास.djvu/२२२

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राजविलास । बज्जि झमझमा ॥ गटकंत युग्गिनि रुहिर गट २ दबट दह बट दुज्जनां । केसरी सिंघ सुकंक गहि करि राव भल सज्ज्यो रिनां ॥ १८ ॥ ___गहगहिय षग गोमाय गिद्धिनि झुड रुडनि झ' फरें । कुननंत अंत फुरंत फेफर तंग भंग सु तर- फरें ॥ धावंत शून तुरंग सिंधुर तोरि शृखल बंधना। केसरी सिंघ सुकंक गहि करि राव भल सज्यो रिनां॥२०॥ हर अट्टहास प्रहास प्रमुदित कमल गल माला गठे । बेताल बपु बिकराल ब्यंतर बीर बष बष करि उठे॥ नच्चन्त नारद तान नव नव बीर बरत बरांगना । केसरी सिंह सुकंक गहि करि राव भल सज्यो रिना ॥२१॥ लगि जेठ लुत्थि अलुत्थि लुत्थिन आन अप्पन को लषे ॥ परि दंति पन्ति पवंग पाइल धंष धर धरनी धुषे । लुत हेम सुरूप लुत्थिय करि तुरंगम कूदना ॥ केसरी सिंघ सुकंक गहि करि राव भल सज्यो रिनां ॥२२॥ दूग सेन दह दिशि भर अचल से अचल दल कल कंदले। भरहरिय अल्लि हुसेन तग्गिय साहिजादा संपुले ॥ जय पत्त जंगहि राव रावत बोल रक्खे . बहु गुनां । केसरी सिंघ सुकंक गहि करि राव भल सज्यो रिनां ॥२३॥ ॥ कवित्त ॥ को अडुल्ल हरवल्ल का सु.करबल्ल अठित्तह । किं गज ढल्ल मझिल्ल भूप छातल्ल छयल्लह ॥ दुज्जन कान