पृष्ठ:राजविलास.djvu/२२४

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राजविलास । . २१७ पार साहि हुजूर सब, कटे बढ़े कद्रुप ।। कहि उद्दत पालम कबिल, इहि रहना न अनूप॥३०॥ जोरावर हिंदू जुरे, झुड २ रहे झमि । बेस भूमि के भूमिपति, अप्पन सकल अभूमि ॥ ३१ ॥ ए पहार पति आदि के, रहे पहारनि रुक्कि । लागत अपनो इहि लगे, थान २ मग यति ॥ ३२ ॥ भारे पर्वत मध्य ए, फुनि जो करे प्रयास । गहो धाइ चीतोर गढ़, महा अचल मेवास ॥ ३३ ॥ ॥ कवित्त ॥ साहि सुबचन प्रमानि सकल दल साज बेग सजि । कियो सुपत्थो कूच तबल टंकार तूर बजि । बढ़ि अवाज बसुमती हलकि ज्यों जलधि हिलोरह । उबट बट्ट गज थट्ट बंधि कंठल चहु ओरह । नरवै नवाब उमराव बहु पर अप्पन समुझि न परत । चित्र- कोट जोइ बेगें चढ्यो अति दिल अंदर भादरत ॥३४॥ ॥दोहा॥ पच्छो भय धरि दिल्लिपति, पुल्यो कोस पचास।. . गह्यो जाइ चीतोरगढ़, उपजी जीवन पास ॥३५॥ इति श्री मन्मान कवि बिरचिते श्रीरामबिलास शास्त्रे सुलतान मुखभंजन गोरीदलगंजन वर्णन . नाम प्रयोदशमी विलासः ॥ १३ ॥ ॥दोहा॥ सज्यो सुदुर्ग विशेष के पोरि बुरज प्राकार । २८