पृष्ठ:राजविलास.djvu/२३८

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राजबिलाम । २३१ बहुरे कुमर सुजान जानि अंकुस बर बारुन ॥ धन कोरि जोरि ढंढोरि धर बैर बहोरि अनंत बल । निज गेह प्राइ बिलसंत नित भीम भोग संजोग भल ॥३८॥ इति श्रीमन्मान कबि बिरचिते श्री राजविलास शास्त्रे ___ श्री भीमसेन कुमारेण गुर्जर देशद्वंद्वकरण नाम पंचदशमो विलासः ॥ १५ ॥ -:0to- ॥ दोहा॥ बंकागढ़ बधनोर पति, सांवलदास सकाज । केतुबंध कमधज्ज कुल, मेरतिया महराज ॥१॥ भगति जोर तिनको भई, बंकेश्वरि बरदाइ । माता त्रिभुवन मंडनी, सांप्रति करन सहाइ ॥२॥ तेग बँधाई देबि तिन, पाती दे करि प्रीति । जहँ जहँ कोने जंग जिन, तहँ तहँ भई सुजीति ॥३॥ ॥ कवित्त । ___ जहँ तहँ कीनी जीति रीति रक्खी रहोरिय । महाराण के काम दंद रचि दल सजि दोरिय ॥ रुक्की आवति रस्त थान भंजे तुरकानी। पीरो परि पतिसाह श्रवन सुनि सुनि सुकहानी ॥ तिन दीन्हों महि मेवार तजि गय औरँग अजमेरगढ़। मेरतिया सांवल दास सम देखि न को सा धर्म दृढ़ ॥ ४ ॥ बिंटि यान बधनोर परी सेना पतिसाहिय । धुपटे धर बर धींग गहन गज तन गिरिं गाहिय ॥ हय मुह