पृष्ठ:राजविलास.djvu/२३९

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२३२ राजविलास । सुप्पर कंण रत्त दृग मुछ रोम बिनु । भारपंध भुज सुभर भार भोजन रु भार तनु ॥ तिन नाम रुहिल्ला नर भखन तजैन को पशु पंखि पल । जहँ तहँ पराव जल उदधि ज्यों उद्धम गति मोरंग दल ॥ ५ ॥ ॥दोहा॥ नायक सब रुहिलानि में, नाम रुहिल्ला खान । लंबी तेग लिये रहें, भासुर जंग अमान ॥६॥ द्वादस सहस तुरंग दल, नेजा बंध नकाब । मदिरा मत्त सुरत्त मुंह, जिह तिह देत न ज्वाब ॥७॥ बिंटि रह्यो दल बल बिकट, बसुमति किय बिपरीति। पारि प्रसाद प्रजारि गृह, अति ही मंडि अनीति॥ ॥ कवित्त ॥ __मुनि इह सांवल दास मरद मेरतिया महिपति । खोजि खलनि षय करन थान उत्थपन अरिन थिति॥ सजि सिताब हय गय दुबाह सन्नाह सपक्खर । कवच करी झंकुरत कुत झलमलत सूर कर ॥ बजि बंब न- गारनि घोष बहु बरन बरन धज नेज बनि । चढ़ि चले फौज चहुं फेर धन उदधि जानि उलट्यो अवनि ॥८॥ खिति धरहरि हय खुरनि चरन गिरि पल्ल घुल्ल भय । उझिय रेन भरि गेंन भानु भंखरिय ताप खय॥ चारन भट्ट सुचंग रंग बालत जस रूपक । सांवल दास सनूर कर कमधज कुलदीपक ॥ जय करहु