पृष्ठ:राजविलास.djvu/२६२

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राजविलास । २५५ हुकमी सांई के बहुत, जंगवार जोधार ॥ ६४ ॥ तदनंतर महाराजा भगवत सिंघ जी की अरदास । तोरि पताका तुरक के नाबति लेइ निसान । आवै तो उमराव तुम्ह, प्रभु हम बचन प्रमान ॥६५॥ तदनु चहुवान रुषमांगद रावत की बिनती। सांइ पचारत सेवकनि, हां भल बोलि हुस्यार । तव मन दूनों बल बढ़े, शत्रुनि करत संहार ॥६६॥ ___तदनु षीची गव रतन की अरदास । इह तन इह मन इह सुधन, इह सुष गेह सयान । हैं सांई ही के सकल, परिकर संयुत प्रान ॥६॥ अथ रावत मानसिंह जी की अरदास । राखी पीठि मुरारि रिन, पंडव पंच प्रधान । कौरव दल तिल २ कियो, हम मन एह मंडान ॥६॥ अथ सगताउत रावत महुकम सिंघ जी की अरदास । सांइ भरोसे रक्खिये, हम अभंग रन हिंदु । कहर काल करवाल गहि, मारहिं मीर मसंद ॥६॥ अथ सगताउन गंगदास कुंअर की अरदास । बिमल बंश जन के विदित, मात पिता प्रभु एकं । ते सांई के कामतें, टरे न इह तिन टेक ॥ ७० ॥ अथ चोंडाउत रावत केसरी सिंघ की अरज । देषत चंदहि दूरितें, चुनत कसानु चकोर । त्यों सांई निरपत सुंझट, रण सुभचावहिं रोर ॥७॥