पृष्ठ:राजविलास.djvu/४४

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राजविलास । रतन सेन रावर बर रज्जिय । संबत दश पण तीसहि सज्जिय। पदमनि सिंहल दीपहिं परनिय । हरि हर बंभ देव मन हरनिय ॥ १५ ॥ अलावदी पालम चढ़ि भाइय । बरस एक रहि पुल बंधाइय ॥ बनिता देन असुर बहिकाइय। मर- दानै तब मारि मचाइय ॥ १६ ॥ भय मनिय असपति तब भग्गिय । जय जय रतनसेन जस जग्गिय ॥ धनि जननी जिन उयरहिं धरियौ। इल अवतार रूप अवतरियौ ॥ १७ ॥ भूमि चूड रावर भट भारी। सज्जत सेन दहल. धर सारी ॥ डुगर सी रावर नन दुल्लय । हरषि समर संमुह ते हल्लय ॥ १८ ॥ रावर पुंजा रण रस रंगिय । निज कर करि अरि सेन निषंगिय ॥ श्री नरपुंज सुदान समप्पय । कवि वर दुख दारिद्रहिं कप्पय ॥ १ ॥ प्रताप सीह रावर सु प्रतापह । छत्र घारि नं प शिर जसु छापह ॥ करन समान सुकरन कहावहिं । तिन समान नृप काइ न आवहिं ॥ २० ॥ इत्यादिक रावर अवतारिय । जटा मुकट ईश्वर अनुहारिय ॥ राजथान चित्रकोट सुरद्यय । गुरु गहिलौत शाष धुर गज्जय ॥ २१ ॥