पृष्ठ:राजविलास.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजबिलास । ४५ करभशाल उन्नत करभ, वृषभशाल वृष जानि । वेसरिशाल विशाल बहु, वेसरि वर्ग बषानि ॥७॥ हसी क्रौड़ चित्रक सरभ, सीह घोस कपि' रिछ । संबर गेंडा रोझ मृग, स्वापद साल सु अच्छ ॥७६॥ पारावत बहु रंग के, मेंना मार चकार । सुक मराल सारस बतक, बिहगसाल बरजोर ॥७॥ जल खंडी पलि जालि युत, भोजनसाल सुभंत । नोबतिशाल बिनोद नित, बहु बादित्र बजंत॥७॥ मंगलीक दरबार सुष, देवालय दीपंत । धजा दंड सेवन कलस, व्योमहि बाद बदंत ॥७॥ गृह गृह मंदिल धवल गृह, गृह २ प्रति जिन गेह । गृह गृहं हरिहर गेह गुरू, गृह गृह अर्थ अछेह ८०॥ गृह गृह भोग विलास. बहु, गृह गृह मंगल माल । गृह गृह हरष बधाउनें, गृह २ सर्व रसाल ॥ १॥ गृह २ नितपानिग्रहन गृह २ पुत्र प्रसूति । गृह २ न्याति सुन्योति यहि, गृह २ अगिनतिभूति॥२॥ जाति गोत बहु बंशयुत, बसत अठारह वर्ण । निय निय कर्म सबै निपुन, सधन सुभास सुवर्ण८३॥ असन बसन वसु शसु पशु, जान दान सनमांन । वाहन भाग सुरूप भल, भाषा भूषन गान ॥ ८४ ॥ माती दांम। उदैपुर इन्द्रलोक अनुहार, वसै सुख वासहि