पृष्ठ:राजविलास.djvu/५३

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राजबिलास । वर्ण अठार । गृह गृह मंदिर पौरि पगार, भरे धन कंचन रूप भँडार ॥८॥ वसै तह राज कुलीस छतीस, हयद्दल गय दल पैदल हीस ॥ बहू बिधि न्याति सुविपनि वृद । पढ़ें चहुँ वेद पुरानरु छंद ॥ ८६ ॥ पुरोहित भट्टरू पाठक व्यास । तिवारिय चौबे दुबे सु प्रकास ॥ सुजोइसि पंडित केड बझाइ। किते श्री पात सु ब्रह्म कहाइ ॥ ८७॥ कलाधर भूधर श्रीधर केइ । यशोधर जैधर लख लहेइ ॥ गजाधर गनधर गोप गुविंद । महीधर गिरधर बालमुकुंद ॥ ८॥ बसे तह सेठ सुसारथ वाह । बड़े संघ नायक श्रावक साह ॥ धरै जिन शासन जेंन सुधर्म। श्रद्धालु कृपालु दयालु सु कम ॥ ८ ॥ वसै तह कायथ केउ हजार । लिषे बहु लेख अलेष लिखार ॥ सदा तिन एक सयान सुबुद्धि । रंगे रस रूपहि ऋद्धि समृद्धि ॥ ८ ॥ वसै विरुदाइय भट्ट निराव । लहै नप द्वारहि लख पसाव ॥ सु चंडिय नंदन चारन चंग। रहै नप संग महारस रंग ॥१॥ कितेइ बसंत सुनार कसार । सुजी सुत्रधार भराए