पृष्ठ:राजविलास.djvu/५५

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४८ राजबिलास । गंध सुगंध । उ4 इक सूत अपार सुहद्द, भरे बहु संपति थट्ट उपट्ट पदा किते तहँ देवल देव सु थान, लगे गुरु पंभ महा कमठांन । धजादंड कुंदन कुभ सुकंत, सिंहासन श्री जिन राज सुभंत ॥१०॥ किते तहँ प्रावतु है नर नारि, किते प्रभु पुजहि ऋष्ट प्रकार । झनकति झल्लरि घंट ठनंक, झलं मलि, दीपक योति निझक ॥१०१॥ . ___कहू रघुबीर कहू करमेश, कहू हर सिद्धि कहूं करमेश । कहूं इक दंत गजानन प्राप, पुलैतिन पिखत पाप संताप ॥१०॥ कितेइ उपाश्रय चोकिय बंध, चंद्रोपक मुत्तिय पाट प्रबंध । उपैतिन मध्य महा मुनिराय, सुसंकुल संघहि सेवित पाइ ॥ १०३ ॥ ___बदै चहु बेद सुधर्म बखान, सिखावहि सुवृत श्री गुरूग्यान । किती ध्रमसाल नेसाल पोसाल, पढ़ें तहँ उत्तम बाल गोपाल ॥ १०४ ॥ कितें तह जोहरि जोहर बाल, सुमानिक मुत्तिय लाल प्रबाल । पना पुषराजरू नीलक पच्च, मंडै नग हीर जिगमग जच्च ॥ १०५ ॥ कहूं कहूं हट्ट परे टकसाल, सु गारहि सावन