राजबिलास। . कृत धर्म भवन धन लगन केत, दिल शुद्ध हे।इ इह दान देत । भल मकर लगन गुरु भवन भाग, भूपाल एह निश्चै सभाग ॥ १६३ ॥ बर एह जन्मपत्री विचार, कहियै सु नवग्रह सुख कार। रचि जन्म नाम तह मेष राशि, पुक्कारि योनि नर गन प्रकाशि ॥ १६४ ॥ नर नाथ चिरंजी उम सुनंद, दुतिवंत देह अभि- नव दिनंद । इन आउ दीर्घ ए हम असीस, जगदीस सकल पूरहु जगीश ॥ १६५ ॥ सुन बिन बचन मन भयो सुख, दीनौ सुद्रव्य नट्ठौ यु दुख । गुरू मान देइ मुक्त सुगेह, उच्छाह अन्य कीने अछेह ॥ १६६ ॥ बर पत्त जाम तीजौ बिहान, भनि मंत्र दिखाए सोमान। जन्म ते रयनि छट्टी जगाय, श्री फल तमोर दीने सुभाइ ॥ १६७ ॥ बहु करत क्रोड दस दिवस वित्त, वकसंत 'हेम हय गय सुवित्त । सूतक निवारि किय जननि स्नान,. सुत निरषि २ हरषत सुजान ॥ १६८ ॥ अनुक्रमें दिवस हादशम आइ, महाराण सकल परिजन मिलाइ । जेउन सु चितबंछित जिवाँइ, पहिराय बसन भूषण बढ़ाइ ॥ १६ ॥
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