पृष्ठ:राजविलास.djvu/६५

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राजबिलास। बोले सुराण तिन अग्ग वत्त, पत्ता सु एह हम पटम पुत्त । श्री राज कुंभार सु नाम संच, पभनहु सुनु महिं मिलि मांन पंच ॥ १७० ॥ कवित्त । राज राज रखन सु राज, रिपु राजदवन रिन । राज रूप रति रवन राज दरसन सुरसाइन ॥ राज कनक तनु रंग राज सुर पति चित रंजन । राज नाउ युग रघुराज कहिये रिपु भंजन ॥ अवतार लयो मेटन असुर शीलोदा बिहु जग सुजस। जगतेश रान नद नज्जयो राजसिंह बर बीर रस ॥ १७१ ॥ छन्द मोती दाम । कहे तब नाम सुराज कुंवार, प्रमोदित चित्त सबै परिवार । दिए वर विप्रनि कंचनदत्त, पहुं जग- तेश महो सुखपत्त ॥ १२ ॥ सिंगारिय सिंधुर अश्व सनूर, सुबल बद्यत नौवति तूर । हलाल संजोति सु गीति सहर्ष, पुजी जल देविय उज्जल पख ॥ १७३ दिनं दिन बाढत सुन्दर देह, निशापति सेत पुखे. जनु नेह । बियो नर मास प्रमान बधंत, तिते दिन एकहि मष्भ तुलंत ॥ १७४ ॥ पलं पल प्यावत मा फ्य पान, बधै जिन कति महा बलवान । धराधिप रखिय पंच सुधाइ, करावहिं मज्जन न्हाइ सुकाइ ॥ १७५ ॥