पृष्ठ:राजविलास.djvu/६६

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राजबिलास। अलंकृत कुंदन अंग उपंग, उमंगहि रखत धाय उछंग । झलंमल तेज जरकम झूल, फबे तिन ऊपर बूटिय फूल ॥ १७६ ॥ खिलावहि मुक्कि सु खेलन अग्ग, गहै युग हक्कि सु ढोरिय लग्ग । लिलाटहि केसर झाड अनूप, रमै रस रंगहि पिखन रूप ॥ १७७ ॥ हिंदोलत माइ सुवर्ण हिंदोल, लसें जनु सारंग लोचनलोल । सु गावहि संहुल राउर गान, सदा मुख पेखत सुख बिहान ॥ १७८ ॥ किलकृत माइ निहारि कुंभार, हियै बढ़ि हर्ष दुहू घन प्यार । हसंत सु आनन अंबुज अप्प, सदा सु प्रसाद विषाद बिलेप ॥ १७ ॥ करे महाराणा सु नंदन कोड, हलै किन ओर नरिंद हिडोड । तुला प्रति मासहि मुत्तिन लोल, उमेदहि देत सुदान अमोल ॥ १८० ॥ बिनोदहि वत्सर एक व्यतीत,, पर्यबर चाल चले सु पुनीत । चढ़े कबहूं हय चंचल चित्त, दुहूं दिसि हत्य समाहत दुत्त ॥ १८१ ॥ सुकेलि चड़े कबहूं. करिकुंत, उदै युत पिखत रूप अचंभ । सुखासन बैठत अप्प सु साज, रधू जग राण सु नंदन राज ॥ १८२ ॥