पृष्ठ:राजविलास.djvu/९

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राजबिलाम । बीणा पुस्तक कर प्रबर, बाहन विमल मराल । सेत बसन भूषन राजै, रोझी देत रमाल् ॥ ८॥ - कवित्त । रीमी देत रसाल रंग रस में सुररानी । गुमती गय गमनि बाग देवी ब्रह्मानी ॥ निशपति मुख मृग नयनि कांति कोटिक दिनकर कर। माचराचर जानि अगम आगम अपरंपर ॥ भय हरनि भगत जन भगवती बचन सुधारश बरसती । राजेश राण गुण संवरत सुप्रसन्न हो सरस्वती ॥१०॥ गीतामालती। सुप्रसन्न सरसुति मात सुमिरत कोटि मंगल कारनी। भारती सुभर भंडार भरनी विकट संकट वारनी ॥ देवी अबोधहि बोध दायक सुमति श्रुत संचारनी । अदुत अनूप मराल भासनि जयति जय जगतारनी ॥ ११ ॥ भाई निरंतर हसित प्राननि महि सुमाननि मोहनी। संकरी सकल सिँगार सज्जित रुद्र रिपुदल रोहनी ॥ वपु कनक कांति कुमारि शिविका अजर तू ही जारनी । अकुत अनूप भराल प्रासनि जयति जय जगतारनी ॥ १२ ॥ पयतल प्रवाल कि लालं पल्लव दुति सहावर दीपर। अंगुली नष दह विमल उज्जल जोति तारक