पृष्ठ:राजविलास.djvu/९६

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राजविलांस। चढन्त पुठि चंचलं चमक्क च्यारि चक्क हैं। गिरिन्द गाढ़ मैन गात संगि राग हक्क हैं,॥ ४६॥ नऊ निधान लछि नाय न्याउसं नरिन्द जू । दिपन्ति कन्ति देह रूप देखते दिनिंद जू ॥ पवित्त शीश आतपत्र चारु चौर चंचलं । सुरद्य जास देश सन्धि सित्तु का न संचलं ॥ ५० ॥ नराधि रूप नाहरं निरन्तरं निसंकयं । करी पलो विभछि कुंभ क्रूर नख कंकय । बलिठ मुठि वीर सो वहै विरुद्द बंकयं । अनाथ नाथ विश्व उंट आन भुल्लि अङ्कयं ॥ ५१ ॥ तिधार तिख तेग तिग्ग तेज ताप तोरई। छतीश सत्य धार छोह छोनि बन्धि छोरई ॥ मजेज जङ्ग मण्डलों मसन्द मीर मोरई। जयं जयं जमैं कविन्द जास कित्ति जोरई ॥ ५२ ॥ निहस्सई निसान नाद नेज नूर नायकं । लसे करी तुरंग लछि लक्ष लील लायकं ॥ सनातनं सधर्म साहु सज्जनं सहायकं । दबट्ट ई दरिद्द दोस दन्ति मत्त दायकं ॥ ५३ ॥ . मृजाद मेर महाराज मही सीस मंडलं । बदै सुबोल जास विश्व वैहितं विहंडनं ॥ षलौं दलों सुसज्जि बँग खग्ग वेग खंडनं । दयाल देवदूबरेनि दुइ सह दंडनं ॥ ५४ ॥