पृष्ठ:राजविलास.djvu/९९

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राजविलास । सिन्धुर तुरग श्री श्री कार । आँखय अवल जन आधार ॥.सागर तोल चित्त समाव । परतक्ष करन लख पसावं ॥ ६७ ॥ बामा सत्य वैरिन बन्धि । मानहि जेह अप्पन सन्धि ॥ निहिसित सत्य नद्द निशान । उदधि सु नीर दल असमान । ६८॥ दुज्जन भरत हय गय दण्ड । अधिक प्रताप आन अखण्ड ॥ बिलसत बिबिधि बाम विलास । मनु रति नाथ द्वादस मास ॥ ६ ॥ __ रीझत देत रीझ रसाल। मेंगल मत्त मोतिन माल ॥ सूरति सहसकिरन समान । अरि तम हरण इन उनमान ॥ ७० ॥ शस्त्र छतीस धार सुजान । पीरन प्रबल दुज्जन प्रान ॥ नाहर ज्यों सदैव निसङ्क। कूर सु कविन जनु नष कङ्क ॥ ७१॥ पिल्लहि पिशुन ईष प्रबन्ध । सहज उस्वास मरुत सुगन्ध ॥ वसुमति विभव विलसन बीर । निर- मल सुजस सुरसरि नीर ॥ ७२ ॥ प्रवर सुमग्ग धरन प्रवीन । षग बल करत पल दल षीन ॥ मन्थर गति सु राजमराल । परठत अहित जनहि पयाल ॥ ७३ ॥ सोवन सरिस कन्ति शरीर । सुन्दर सबल सा-