पाँचवाँ दृश्य (स्थान-उदयपुर के राजा का सभाभवन । महाराणा अपने दर्यारियों महित गद्दी पर बैठे हैं। अनन्त मिश्र सामने खड़े हैं। समय-प्रातःकाल ।) राणा-तो आप सब सरदारों की क्या मर्जी है। मोहकमसिंह शक्तावत-अन्नदाता, इसमें विचारने की क्या वान है । शरणागत राजपूत बाला को विमुख नहीं किया जा सकता। सोलंकी दलपत-राजपूत की बेटी हिन्दुपति राणा की शरण छोड़कर कहाँ जायगी महाराज । महारावत हरिसिंह-हमारी तलवारों की धार में काफी पानी है, उसका स्वाद इस बार मुग़ल चखेंगे। झाला सुलतानसिंह-सिंहनो जन सिंह का आश्रय लेती है तब गीदड़ों का उसे क्या भय है। मीसोदिया माधोसिंह-महाराज, इस विषय में सोच-विचार करना हमारे लिए अपमान की बात है। राणा-वीर पुरुषों, आप लोगों ने अपने योग्य ही बात कही। आप लोग योद्धा हैं, क्षत्रिय हैं, सूरमा हैं। मरना मारना ही सूरमा की शोभा है, और शरणागत की रक्षा करना प्रत्येक क्षत्रिय का धर्म है।
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