पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१४१

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१२६ राजसिंह [आठवाँ दुर्जन हाड़ा-(तलवार सूतकर ) खबरदार । (चारो में तलवार चलती है । भीड़ इकट्ठी हो जाती है) भीड़ में से एक आदमी-इन्होंने मुझे लूट लिया, २।। सेर मिठाई खा गये और पैसा माँगा तो गालियाँ दीं। दूसरा आदमी-अभी-अभी इस डाढ़ीवाले ने मेरा दुपट्टा छीना है और मारा है। विक्रम-(तलवार चलाता हुआ) डाकू हो तुम । सिपाही-(तलवार घुमाता हुआ ) काफिर कुत्ता । (लड़ते-लड़ते एक सिपाही मारा ज ता है, दूसरा भाग जाता है।) विक्रम-(तलवार पोछता हुआ) चलो हाड़ा! आज रात को जाने क्या होगा। (दोनों तेजी से जाते हैं । भीड़ भॉति-भाँति की बाते करती हुई इधर-उधर जाती है । लाश वही पड़ी रह जाती है।)