पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१४४

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दृश्य] तीसरा अंक १२६ रत्नसिंह-(कुछ क्षण आँख फाड़ फाड़कर सिर की ओर देखकर) लाओ फिर ! वीरबाला का यह अमूल्य प्रमाण (सिर को हाथ में लेकर बालों की लट चीर कर गले में खटका लेता है। फिर तलवार अंची करके) वीरो, आज हमारे लिये पवित्र दिन है । अब हमारे रक्त की, बाहुबल की और राजपूती जीवन की परीक्षा होगी। तुम में से जिसे जीवन प्यारा हो-अलग हो जाय । सैनिक-महाराणा जी की जय, श्री एकलिङ्गजी की जय । हम मर मिटेगे, पर पीछे पैर न देंगे। रत्नसिंह-(दर्प से) नहीं, हम मरने नहीं जा रहे है। प्रतिज्ञा करो कि जब तक महाराणा सकुशल रूपनगर से न लौट चलें, हम बादशाह को आगे नहीं बढ़ने देंगे। सब-हम प्रतिज्ञा करते हैं। रत्नसिंह-हम न मरेंगे, न टलेंगे, न पीछे हटेंगे। सब-हम प्रतिज्ञा करते हैं। रत्नसिंह-चलो फिर वीरो ! आज हमारी प्यासी तलवारेंशत्रु के रक्त का पान करेंगी। सब-जय, श्री एकलिङ्ग की जय । मेवाड़पति की जय । (सब जाते हैं । पर्दा गिरता है।)