पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१४५

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दसवाँ दृश्य , (स्थान-रूपनगर का एक भग्न मन्दिर । मन्दिर में पचास से ऊपर मनुष्य बैठे मन्त्रणा कर रहे हैं । विक्रम सोलकी और दुर्जन हाड़ा बीच में बैठे हैं)। विक्रम-सर्दारो, आज हमें इस रूप में एकत्र होकर गुप्त मन्त्रणा करनी पड़ी, इसका हमें खेद है। परन्तु धर्म और देश की रक्षा के लिए हमें यह काम करना पड़ा। आपको मालूम है कि रूपनगर के राजा ने गद्दी पर बैठते ही राजपूतों की नाक काटनी प्रारम्भ कर दी है। सब-हमारे राजा आप हैं । आप ही रूपनगर के सच्चे राजा हैं। विक्रम-मैंने सोचा था कि मैं बूढ़ा हुआ, राज काज के खटराग में न पडू। यही ठीक है, इसी से रामसिंह के राजा होने का विरोध न किया । मेरे विरोध करने पर रामसिंह सब-राजा नहीं हो सकता था। एक-क्या कायर वीरों का.राजा हो सकता है ? दूसरा-नहीं। जिस प्रकार गीदड़ सिंहों का राजा नहीं हो सकता।