पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१४६

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श्य] तीसरा अंक १३१ विक्रम-मित्रो, इस समय हमारी प्रतिष्ठा पर संकट आया है, हमें उसे पार करना होगा। सब-आपकी आज्ञा से हम आग में कूद पड़ेंगे। विक्रम-आपको मालूम है, बादशाह बड़ी भारी सेना लेकर हमारे मुंह में कारिख लगाने आ रहा है। क्या हम जीते जी राजकुमारी उसे ब्याह देंगे। सब-नहीं-नहीं, कदापि नहीं। विक्रम-मालूम होता है कि बादशाह निकट आ गया है। अभी उसके दो सैनिकों से हमारी मुठभेड़ हो चुकी है। संकट अब सिर पर है । हमे तैयार रहना चाहिए। सब-हम तैयार हैं। विक्रम-मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि समय पर हमें दैवी सहायता मिल जायगी और राजकुमारी की रक्षा हो जायगी। सब-हम मन, वचन, कर्म से प्राण देने को तैयार हैं। विक्रम-तब सुनिए, हमें अपने अपने आदमियों सहित किले के निकट ही रहना चाहिए। सब-ऐसा ही होगा। विक्रम-संकेत के पाँच स्थल हैं। एक चामुण्डा का मन्दिर, दूसरा हाड़ा का घर, तीसरे अनन्तमिन की वाड़ी, चौथा कुमारी का महल, पाचवाँ महल का सिंह द्वार। संकेत में दो बार शंख बजने पर एक दम महल घेरे