पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१५०

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रश्य] तीसरा अंक का अन्न खा जायगी। इससे तो यही उत्तम है कि मैं आज ही विष खा लू । बादशाह मार्ग से लौट जाय। निर्मला-सुनो । अनन्तमिश्र को उदयपुर गये आज पाँचवाँ दिन है। यदि विघ्न-बाधा न हुई तो वे पहुँच भी लिये और सहायता साथ ले चल भी दिये। ३ दिन में अवश्य राणा आ जावेंगे यह मेरा मन कहता है। राजकुमारी-भाई मानेंगे ? निर्मला-महारानी उन्हें मना लेंगी । मैं महारानी को राजी कर लूंगी। राजकुमारी और जो वे न मानें ? निर्मला तो भारतेश्वरी स्वयं उन्हें हुक्म देंगी। किसकी मजाल है, आलमगीर की मलिका का हुक्म टाल सके। राजकुमारी-तू मर। निर्मला-अभी नहीं । तुम्हारे हाथ पीले हो जायँ तब । राजकुमारी-(फीकी हँसो हँसकर ) अरी चिन्ता न कर, सब दुखों की दवा मेरे पास यह है। (विष भरी अंगूठी दिखाती है) निर्मला-राजकुमारी, तुम जुग जुग जिओ। मैं जाकर महारानी से कहती हूँ तुम तनिक विश्राम करो। राजकुमारी-(रोती हुई ) अब मैं चिर विश्राम करूंगी सखी । (ऑसू पोंछती है । निर्मला रोती हुई जाती है)