पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१५७

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राजसिंह [दूसरा चारुमती-आशा, आशा, हाय यह आशा कैसी भारी चीज है। परन्तु सखी यह मेरी रक्षा करेगी। अगूठी दिखातो है) इसमें हलाहल विष भरा है। निर्मल-(ऑसू भर कर) मरें तुम्हारे दुश्मन, तुम जीओ सखी ! (ऑसू पोछकर धीरे से कान मे) इसमें कुछ भेद मालूम होता है। चारुमती-कैसा भेद ? निर्मल-न बादशाह आये न राणा जी, कहीं मार्ग में मुठभेड़ हो गई हो तो चारुमती हे परमेश्वर, क्या होने वाला है। निर्मल-सब ठीक होगा। चुप । वह राजा आ रहे है , (रामसिंह व्यग्र भाव से आता है) रामसिंह-(स्वगत) बड़ी मुश्किल है। हर जगह कमी ही कमी नजर आती है । बहुत कोशिश करता हूँ कि सब ठीक-ठाक रहे मगर जहाँ देखता हूँ, कसर है। बादशाह सला- मत अभी नहीं आए। दिन छिप रहा है, विवाह का मुहूर्त निकट आगया। उधर बन्दोबस्त देखता हूँ तो (कुछ सोचकर ) खैर, देखा जायगा (पुकार कर) कोई है ? (एक सेवक आता है) सेवक- महाराज की क्या आज्ञा है ? रामसिंह-(क्रोध से)कामदार साहेब कहाँ हैं, बदनसीव !